Aug 28, 2020



    दिष्ट धारा मोटर स्टार्टर ( DC motor starter )

    जब कोई मोटर स्थिर अवस्था में होती है तो उसमें कोई Back EMF उत्पन्न नहीं होता है तथा आर्मेचर कम प्रतिरोध वाले परिपथ का कार्य करता है । 

    यदि मोटर को मुख्य सप्लाई के साथ सीधा ही जोड़ दिया जाए तो आर्मेचर चालक मुख्य सप्लाई से अधिक धारा ग्रहण करने लगते है जिसके निम्न परिणाम हो सकते है।  
    (i) Armature Winding का विद्युतरोधन नष्ट हो सकता है । 
    (ii) दिकपरिवर्तक (Commutator) पर अधिक स्फुलिंग या चिनगारियाँ ( sparking) उत्पन्न हो जायेंगी । 
    (iii) सप्लाई वोल्टता में गिरावट आ सकती है । 
    (iv) बहुत अधिक प्रारम्भिक बलघूर्ण (starting torque) उत्पन्न होगा, जिससे मोटर की गति अचानक बहुत अधिक बढ़ जायेगी तथा जिससे मोटर के घूमने वाले भागों को तथा मोटर पर लगे लोड को क्षति पहुँच सकती है ।

    इसलिये प्रारम्भिक धारा को सीमित करने के लिये स्टार्टर का प्रयोग किया जाता है जो कि मोटर प्रारम्भ करने के समय प्रयुक्त वोल्टता को कम करके आर्मेचर में भेजता है । 

    स्टार्टर का सरल रूप एक परिवर्ती प्रतिरोध (variable resistor) है, जिससे मोटर को चलाते समय आर्मेचर की श्रेणी में जोड़ दिया जाता है । 

    जैसे जैसे मोटर स्पीड बढ़ती जाती है तथा Back EMF स्थापित होता जाता है, वैसे - वैसे प्रतिरोध को आर्मेचर परिपथ से कम करते जाते है । 

    जब मोटर अपनी सामान्य चाल को प्राप्त कर लेती है तो प्रतिरोध को आर्मेचर परिपथ से पूर्ण रूप से अलग कर लिया जाता है । 


    NCV और OLC क्या है 

    मोटर के स्टार्टर के बारे में जानने से पहले हम निम्न के बारे में जानना आवश्यक है। नीचे स्टार्टर में प्रयुक्त वोल्टताहीन कुण्डली (No-volt coil) तथा अधिभार कुण्डली (Over Load Coil) की संरचना तथा कार्य का वर्णन किया गया है 

    (i) वोल्टताहीन कुण्डली (No-volt coil) 

    यह कुण्डली (NVC) चुम्बकीय पत्तियों (Lamination) पर कुण्डलित होती है। जिसमें पतले विद्युतरोधित तार के इतने turn दिये जाते है कि मोटर क्षेत्र की पूर्ण धारा उसमें होकर सरलता से प्रवाहित हो सके । 

    वोल्टताहीन कुण्डली (NVC), क्षेत्र प्वाइन्ट Z की श्रेणी में जोड़ी जाती है। इस कुण्डली के मुख्य दो कार्य हैं ।

    (A)  स्टार्टिंग आर्म को चुम्बकीय बल द्वारा मोटर की पूर्ण गति की स्थिति में ON  स्टड पर पकड़े रखना।

    (B) यदि सप्लाई वोल्टता अचानक बन्द हो जाये तो अचुम्बकीय होकर स्टार्टिंग आर्म को छोड़ देना, ताकि यह OFF स्थिति पर चली जाये तथा पुनः विद्युत सप्लाई आने पर मोटर को सुरक्षापूर्वक प्रारम्भ किया जा सके । 


    (ii) अधिभार कुण्डली ( Over load coil )


    यह कुण्डली मोटे विद्युतरोधी तारों के बहुत कम वर्तनों ( turns ) से बनी होती है तथा starting arm तथा लाइन की श्रेणी में जुडी रहती है । 

    इसका मुख्य कार्य परिपथ में अधिक धारा प्रवाहित होने पर, चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करके लीवर (lever) को उठा कर वोल्टताहीन कुण्डली (NVC) के दोनों सिरों को मिला देना है।

    जिससे वोल्टताहीन कुण्डली (NVC) अचुम्बकीय होकर प्रारम्भन भुजा को छोड़ दे तथा प्रारम्भन भुजा स्प्रिंग प्रभाव से OFF अवस्था में आ जाये । 

    इस प्रकार अधिभार कुण्डली (OLC) किसी दोष के कारण मोटर आर्मेचर परिपथ में अधिक धारा प्रवाह के सम्भावित खतरे की सुरक्षा, वोल्टताहीन कुण्डली (NVC) के सहयोग द्वारा प्रदान करती है। 

    चित्र में तीन प्वाइन्ट स्टार्टर को दिष्ट धारा शन्ट मोटर के साथ संयोजित दिखाया गया है ।
        
    मुख्य रूप में दिष्ट धारा मोटरों के लिये निम्नलिखित स्टार्टर प्रयोग किये जाते है । 

    शन्ट तथा कम्पाउण्ड मोटरों के लिये दो प्रकार के स्टार्टर प्रयोग में लाये जाते है 
    (i) तीन प्वाइन्ट स्टार्टर ( three point starter )
    (ii)चार प्वाइन्ट स्टार्टर ( four pciit starter ) 

    तीन प्वाइन्ट स्टार्टर ( Three point starter )


    उपरोक्त चित्र में तीन प्वाइन्ट स्टार्टर का विद्युतीय आरेख दिखाया गया है । इस स्टार्टर में तीन टर्मिनल (प्वाइन्ट) बने होते है। जिस पर L, Z तथा A अक्षर अंकित होते है । 

    लाइन का धनात्मक सिरा L से संयोजित किया जाता है तथा लाइन का ऋणात्मक सिरा मोटर आर्मेचर के एक सिरे A2 तथा क्षेत्र के एक सिरे Z2 को आपस में एक साथ मिलाकर बने प्वाइन्ट पर दिया जाता है। जैसा कि चित्र में दिखाया गया है । 

    मोटर आर्मेचर का दूसरा सिरा A1, स्टार्टर के प्वाइन्ट A से संयोजित किया जाता है। तथा मोटर क्षेत्र का दूसरा सिरा Z1 स्टार्टर के प्वाइन्ट Z से संयोजित रहता है। 

    स्टार्टर का प्वाइन्ट L स्टार्टर की Over Load Coil द्वारा Starting Arm से संयोजित होता है । Starting Arm को पकड़ने वाला भाग विद्युतरोधित पदार्थ से बना होता है ।

    जब मोटर को स्टार्ट किया जाता है तब मुख्य स्विच को ऑन कर देते है तथा एक Starting Arm को धीरे धीरे बायीं और से दायीं और घुमाते है।

    जब तक आर्म स्टड नंबर 1 के सम्पर्क में होती है तब तक फील्ड सर्किट लाइन के सीधा समानांतर में जुड़ा रहता है। तथा इसी समय कुल स्टार्टिंग प्रतिरोध Rs आर्मेचर के सीरीज में होता है। 

    आर्मेचर द्वारा ली गई स्टार्टिंग करंट जहां Rs स्टार्टिंग प्रतिरोध तथा Ra आर्मेचर प्रतिरोध है। 

    अब जैसे ही स्टार्टिंग आर्म को आगे की चलाया जाता है, स्टार्टिंग प्रतिरोध Rs घटता जाता है। 

    अब स्टार्टिंग आर्म धीरे धीरे प्रतिरोध को काटती हुई ऑन स्टड पर पहुँच जाती है। अर्थात इस समय मोटर अपनी पूर्ण गति प्राप्त कर लेती है। तब स्टार्टिंग प्रतिरोध पूर्ण रूप से कट जाता है। 

    Starting Arm विभिन्न स्टड्स पर स्पर्श करती हुई आगे की और on स्टड तक बढ़ती है तथा यह एक स्प्रिंग द्वारा नियंत्रित रहती है। 

    ताकि अचानक सप्लाई बंद होने पर या किसी अन्य दोष पर स्टार्टिंग आर्म स्प्रिंग की सहायता से तुरंत ऑफ कंडीशन पर आ जाए। 

    स्टार्टिंग आर्म ऑफ कंडीशन में पीछे न जाए, इसके लिए एक रबर टेक लगी रहती है। स्टार्टिंग आर्म में एक मुलायम लोहे का टुकड़ा लगा रहता है। 

    जो कि ON स्थिति में वोल्टताहीन कुण्डली (No-volt coil) के विद्युत चुम्बक, द्वारा आकर्षित होकर थमा रहता है | 

    No Volt Coil (NVC) का विद्युत चुम्बक, मोटर की शन्ट क्षेत्र धारा से energised रहता है । इस कुण्डली को hold - on coil या निम्न वोल्टता कुण्डली भी कहते है । 

    यह देखा गया है कि जैसे ही starting arm स्टड नं० 1 से अन्तिम स्टड की ओर बढ़ती है, क्षेत्र धारा को आर्मेचर परिपथ से कट चुके प्रारम्भन प्रतिरोध भाग से होते हुए पीछे की ओर प्रवाहित होना पड़ता है।

    जिसके कारण शन्ट धारा थोड़ी घट जाती है, परन्तु प्रारम्भन प्रतिरोध (R) का मान शन्ट क्षेत्र प्रतिरोध की अपेक्षा बहुत कम होता है। इसलिये शन्ट धारा Ish में थोड़ी कमी नगण्य होती है । 

    इस कमी को स्टार्टर में एक पीतल की आर्क (brass arc) लगाकर दूर किया जा सकता है। जैसा कि चित्र में दिखाया गया है । 

    जब स्टार्टिंग आर्म स्टड नं० 1 पर आती है। तब पीतल की आर्क स्टार्टिंग आर्म से सीधी संयोजित हो जाती है। जिससे क्षेत्र परिपथ, पीतल आर्क के द्वारा पूर्ण होता है। 

    और इस प्रकार शन्ट धारा प्रारम्भन प्रतिरोध (Rs) से होकर प्रवाहित नही होती है ।
     

    चार प्वाइन्ट स्टार्टर (Four Point Starter)

    four point dc motor starter

    यह स्टार्टर शन्ट तथा कम्पाउण्ड मोटरों के लिये प्रयोग किया जाता है जहाँ पर स्टार्टर द्वारा ही मोटर की गति को नियन्त्रण करना हो । 

    इस स्टार्टर में चार प्वाइन्ट होते है | 3 प्वाइन्ट L , Z तथा A तथा एक चौथा प्वाइन्ट N होता है जिसमें सप्लाई लाइन का ऋणात्मक तार दिया जाता है जैसा कि चित्र में दिखाया गया है । 

    चार प्वाइन्ट स्टार्टर में NVC की क्षेत्र कुण्डली, मोटर के श्रेणी में नहीं जोड़ी जाती है बल्कि दिष्ट धारा सप्लाई के पार्श्व में प्रारम्भन प्रतिरोध Rs की श्रेणी में जोड़ी जाती है । 

    वोल्टताहीन कुण्डली (No - volt coil), मुख्य सप्लाई के सीधे पार्श्व में होती है ताकि OC के सम्पर्को की लघुपथित सप्लाई होने पर सुरक्षा हो सके । 

    इसके लिये No-volt coil के श्रेणी में एक सुरक्षात्मक प्रतिरोध R भी लगा दिया जाता है जैसा कि चित्र में दिखाया गया है । 

    इसका अभिप्रायः यह है कि OLC कुण्डली द्वारा लीवर उठाने के समय NC के लघुपथित हो जाने पर , उसमें से नाशक धारा रूक जाये तथा कुण्डली सुरक्षित रहे । 

    यहाँ पर भी वोल्टताहीन कुण्डली का कार्य तीन प्वाइन्ट स्टार्टर के समान ही है । 
     
    इसमें अधिभार कुण्डली O.C. (over load coil) भी लगी होती है जो कि वोल्टताहीन कुण्डली को लघु परिपथ ( short circuit ) कर देती है।
      
    जबकि धारा किसी विशिष्ट मान ( specified value ) से बढ़ जाती है | प्रायः चार प्वाइन्ट स्टार्टर एक अतिरिक्त क्षेत्र को कमजोर करने वाले प्रतिरोध के साथ गति नियन्त्रण के लिये लगाये जाते हैं । 

    श्रेणी मोटरों के स्टार्टर ( Series Motor Starter )

    2 point dc motor starter
    श्रेणी मोटर के लिये स्टार्टर में भी एक उपयुक्त परिवर्ती प्रतिरोध होता है जो कि मोटर को चलाते समय आर्मचर परिपथ की श्रेणी में दिया जाता है । 

    प्रतिरोध को धीरे - धीरे काटते ( cut - off ) जाते है, जैसे - जैसे मोटर गति को प्राप्त करती जाती है । 

    इन स्टार्टरों में भी वोल्टताहीन कुण्डली (no-volt coil ) या भारहीन कुण्डली (no-load coil) लगाई जाती है । 

    चित्र में वोल्टताहीन कुण्डली (No-volt coil ) के द्वारा स्टार्टर के आन्तरिक संयोजन ( internal connection ) दिखाये गये हैं।  
    2 point dc motor starter

    जबकि चित्र b में भारहीन कुण्डली ( No - load coil ) के द्वारा संयोजन दिखाये गये है । चित्र a में वोल्टताहीन कुण्डली को सुरक्षित प्रतिरोध (R) की श्रेणी में जोड़ा गया है । 

    इस स्थिति में यदि किसी कारणवश पीछे से सप्लाई बन्द हो जाये तो स्टार्टर का हैन्डिल स्वयं स्प्रिंग की मदद से वापिस चला जाता है । इस स्थिति में सुरक्षा, वोल्टताहीन कुण्डली द्वारा होती है |

    क्योंकि दिष्ट धारा श्रेणी मोटर कम लोड ( light load ) पर बहुत अधिक गति से घूमती है, इसलिये इस बात की सुरक्षा के लिये, स्टार्टर की भारहीन कुण्डली को आर्मेचर तथा क्षेत्र परिपथ के श्रेणी में जोड़ा जाता है जैसा कि चित्र b में दिखाया गया है । 

    इस कुण्डली में विद्युतरोधी तार के कम वर्तन ( turns ) दिये जाते है तथा यह कुण्डली भी उतनी ही धारा लेती है जितनी कि मोटर । 

    अगर किसी समय मोटर पर लोड कम होगा तब उस समय भारहीन कुण्डली में भी कम धारा प्रवाहित होगी तथा उस समय हैन्डिल को पकड़े रखने की स्थिति में नही होगी तथा हैन्डिल अपने आप ऑफ ( off ) स्थिति पर चला जायेगा तथा मोटर सुरक्षित हो जायेगी । 

    इसलिये इस प्रकार के स्टार्टर को भारहीन सहित ( with no - load release ) भी कहा जाता है | प्रायः श्रेणी मोटर के स्टार्टर का प्रयोग मोटर की गति को नियन्त्रित करना है |

    3 comments:

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