12 जनवरी 2020 को पूरा देश स्वामी विवेकानंद की 157 वीं जयंती मनाने जा रहा है। हर साल 12 जनवरी को उनकी जयंती मनाई जाती है। इस दिन को पूरे देश में युवा दिवस के तौर पर मनाया जाता है। बता दें कि युवा सन्यासी और आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद श्री रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे जिनका रोम.रोम राष्ट्रभक्ति में डूबा हुआ था। वे जितना ईश्वर में विश्वास करते थे उतना ही वे दीनहीनों की सेवा करना सच्ची ईश्वर पूजा मानते थे।
उन्होंने कभी भी किसी चीज का लोभ अपने मन में नहीं रखाए ना ही उन्होंने निजी मुक्ति को जीवन का लक्ष्य बनाया था। उनका एकमात्र लक्ष्य करोड़ों भारतीयों का जीवन का उत्थान था। युवा सन्यासी स्वामी विवेकानंद आज भी करोड़ों युवाओं के प्रेरणास्रोत हैं। करोड़ों लोगों के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद की जयंती पर पढ़ें उनके कुछ अनमोल विचारए इनका पालन करते हैं तो ये आपके जीवन के रुख को बदल कर रख देंगे।
स्वामी विवेकानंद ने 16 वर्ष की आयु में
कलकत्ता से एंट्रेस की
परीक्षा पास की और कलकत्ता
विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि
प्राप्त की । स्वामी
विवेकानंद नवम्बर 1881 ई. में रामकृष्ण से मिले और
उनकी आन्तरिक आध्यात्मिक चमत्कारिक शक्तियों से विवेकानंद इतने
प्रभावित हुए कि वे उनके
सर्वप्रमुख शिष्य बन गये। और
स्वामी विवेकानंद ने 1 मई 1897 में कलकत्ता में रामकृष्ण मिशन और 9 दिसंबर 1898 को कलकत्ता के
निकट गंगा नदी के किनारे बेलूर
में रामकृष्ण मठ की स्थापना
की, 4 जुलाई 1902 को बेलूर में
रामकृष्ण मठ में उन्होंने
ध्यानमग्न अवस्था में महासमाधि धारण कर प्राण त्याग
दिए।
स्वामी विवेकानन्द भारतीय संस्कृति एवं हिन्दू धर्म के प्रचारक.प्रसारक
एवं उन्नायक के रूप में
जाने जाते हैं। विश्वभर में जब भारत को निम्न
दृष्टि से देखा जाता
था, ऐसे में स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1883 को शिकागो के
विश्व धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म पर प्रभावी भाषण
देकर दुनियाभर में भारतीय आध्यात्म का डंका बजाया। 11 सितंबर
1893 को विश्व धर्म सम्मेलन में जब उन्होंने अपना
संबोधन अमेरिका के भाइयों और
बहनों से प्रांरभ किया
तब काफी देर तक तालियों की
गड़गड़ाहट होती रही। स्वामी विवेकानंद के प्रेरणात्मक भाषण की
शुरुआत मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनों के साथ करने
के संबोधन के इस प्रथम
वाक्य ने सबका दिल
जीत लिया था।
हमारे सामने यही एक महान आदर्श
है और हर एक
को उसके लिए तैयार रहना चाहिए वह आदर्श है
भारत की विश्व पर
विजय। इससे कम कोई लक्ष्य
या आदर्श नहीं चलेगा उठो भारत.......... तुम अपनी आध्यात्मिक शक्ति द्वारा विजय प्राप्त करो। इस कार्य को
कौन संपन्न करेगा स्वामीजी ने कहा मेंरी
आशाएं युवा वर्ग पर टिकी हुई
हैं।
स्वामी जी को यु्वाओं
से बड़ी उम्मीदें थीं। उन्होंने युवाओं की अहं की
भावना को खत्म करने
के उद्देश्य से कहा है यदि तुम स्वयं ही नेता के
रूप में खड़े हो जाओगे तो
तुम्हें सहायता देने के लिए कोई
भी आगे न बढ़ेगा। यदि
सफल होना चाहते होए तो पहले अहं ही नाश कर डालो। उन्होंने
युवाओं को धैर्य व्यवहारों
में शुद्धता रखने आपस में न लड़ने पक्षपात
न करने और हमेशा संघर्षरत्
रहने का संदेश दिया।
No comments:
Post a Comment