दोस्तों अमृतसर में 19 अक्टुम्बर 2018 को रावण दहन मेले के दौरान ट्रेन की चपेट में आने से 61 लोगों की जान चली गई थी, ऐसा ही हादसा महाराष्ट्र के औरंगाबाद से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है, यहां रेल की पटरी पर प्रवासी मजदूरों को एक मालगाड़ी ने रौंद दिया, औरंगाबाद के जालना रेलवे लाइन के पास ये हादसा हुआ है, जिसमें 16 मजदूरों की मौत हो गई है जबकि कई अन्य मजदूर घायल बताए जा रहे हैं, ये हादसा औरंगाबाद-जालना रेलवे लाइन पर 08 मई 2020 शुक्रवार सुबह 6.30 बजे के करीब हुआ है, इन दोनों हादसों के वायरल वीडियो में ट्रेन की स्पीड को लेकर लोग सवाल उठा रहे हैं, लेकिन लोगो को शायद पता नहीं है की चालक चाह कर भी ट्रेन को नहीं रोक सकता है क्योकि चालक अगर इमरजेंसी ब्रेक लगाता है तो भी ट्रेन 800 से 900 मीटर दूर जाकर रुकती है। आओ ट्रैन के इस ब्रैकिंग सिस्टम को समझते है -
ट्रैन का ब्रेकिंग सिस्टम
दोस्तों ट्रेन के हर डिब्बे में एयर ब्रेक पाइप होता है और इस एयर ब्रेक का पांच किलोग्राम प्रति वर्ग सेमी प्रेशर रहता है। यह प्रेशर नायलॉन के ब्रेक शू को आगे पीछे करता है। जैसे ही प्रेशर कम किया जाता है तो ब्रेक शू पहिए से रगड़ खाता है और ट्रेन रुकने लगती है। सामान्यत: एक बार ट्रेन को रोकने में करीब एक किलोग्राम प्रति वर्ग सेमी प्रेशर खत्म होता है। स्टेशन पर ट्रेन रुकने के बाद हर डिब्बे के नीचे लगे कंप्रेशर से एक मिनट के भीतर फिर से प्रेशर पांच किलोग्राम प्रति वर्ग सेमी कर देते हैं और ब्रेक शू पहिए से अलग हो जाते हैं और ट्रैन चलने लग जाती है
ट्रैन के लिए सिग्नल की आयश्यकता -
ट्रेन को कब चलना है और कब रुकना है, ये केवल लोकोपायलट के हाथ में नहीं होता, वो या तो सिग्नल के हिसाब से चलता है, या फिर गाड़ी के गार्ड के कहे मुताबिक, लोकोपायलट और गार्ड ही वो दो लोग होते हैं, जो गाड़ी के ब्रेक लगाने का फैसला लेते हैं. सही तो ये है कि किसी ट्रेन को 100 से 150 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से भगाना अपेक्षाकृत आसान काम होता है लेकिन ब्रेक लगाना बहुत ही जटिल कार्य है और इस तरह से लगाना कि गाड़ी सही वक्त पर सही जगह रुके
लोको पायलट ट्रेन को सिग्नल के अनुसार ही चलाते हैं। किसी आपातकाल की स्थिति में लोको पायलट और गार्ड ही ब्रेक लगाने का निर्णय लेते हैं। वास्तव में ट्रेन को दौड़ाना आसान है, उसे रोकना बहुत ही जटिल है। ट्रैन के ब्रेक इस तरह लगाए जाते हैं कि ट्रैन सही जगह पर रुके। सिग्नल को तोड़कर आगे जाने से नौकरी जाना तय है। ग्रीन सिग्नल होने पर लोकपिलोट ट्रेन नियत गति से दौड़ाते हैं, दो पीले लाइट वाला सिग्नल दिखता है, वो गाड़ी की रफ्तार को कम करना शुरू करता है. और इसके लिए उसके पास दो ब्रेक होते हैं, एक इंजन के लिए और दूसरा पूरी ट्रेन के लिए, ट्रेन के प्रत्येक कोच के पहिए पर ब्रेक होता है, ये सभी आपस में ब्रेक पाइप से जुड़े होते हैं। दो पीले लाइट वाला सिग्नल होने पर ट्रेन की गति 30 से 40 किमी प्रति घंटा कर ली जाती है। एक पीला सिग्नल होने पर ट्रेन को रोकने के लिए ब्रेक लगाया जाता है, क्योंकि अगला सिग्नल लाल होना तय माना जाता है। इसी के अनुसार रेड सिग्नल वाले पोल से पहले ट्रेन को रोक दिया जाता है। रेलवे में लाल सिग्नल पार करना लोकपिलोट की गंभीर लापरवाही माना जाता है और ऐसा होने पर जांच होती है.
इमरजेंसी ब्रेक की आवश्यकता -
लोकोपायलट हर उस स्थिति में इमरजेंसी ब्रेक लगा सकता है, जिसमें उसे तुरंत गाड़ी रोकना ज़रूरी लगता है. जैसे की ट्रैन के सामने कुछ आ जाए, पटरी में खराबी दिखे, गाड़ी में कोई खराबी हो, कुछ भी कारण हो सकता है. ट्रैन में इमरजेंसी ब्रेक उसी लीवर से लगता है जिससे सामान्य ब्रेक लगता है, लीवर को एक निर्धरित सीमा से ज़्यादा खींचने पर इमरजेंसी ब्रेक लग जाते हैं
इमरजेंसी ब्रेक लगने के बाद ट्रैन कितना और चलती है -
यदि 24 डिब्बों की ट्रेन अधिकतम 110 किमी प्रति घंटा की स्पीड से गति कर रही है और इस स्पीड पर लोको पायलट यदि ब्रेक लगाता है तो एयर पाइप का प्रेशर खत्म हो जाता है और पहियों पर लगे ब्रेक शू रगड़ खाने लगते हैं। ऐसे में भी ट्रेन 800 से 900 मीटर जाकर पूर्ण रूप से जाकर रुकती है।
मालगाड़ी के मामले में रुकने की दूरी इस बात पर निर्भर करती है कि गाड़ी में कितना माल लोड है, मालगाड़ी में इमरजेंसी ब्रेक लगाने पर वो 1100 से 1200 मीटर जाकर रुकती है
वहीं ईएमयू जैसी ट्रेनों की ब्रेकिंग सिस्टम और अच्छा होता है। इसमें प्रेशर ब्रेक के साथ-साथ इलेक्ट्रो न्यूमेट्रिक ब्रेङ्क्षकग सिस्टम भी काम करता है। यह गाडिय़ां इमरजेंसी ब्रेक लगाने पर लगभग 600 मीटर की दूरी पर जाकर रुक जाती है।
सामने कुछ आने पर locopilot ट्रेन को क्यों नहीं रोकता है -
आमतौर पर लोग, जानवर, गाडिय़ां अचानक ट्रेन के सामने आ जाने पर लोको पायलट के पास इमरजेंसी ब्रेक लगाने का समय नहीं होता है और इमरजेंसी ब्रेक लगाने पर भी ट्रैन काफी दूर जाकर रुकती है। ऐसे में locopilot चाह कर भी इमरजेंसी ब्रेक नहीं लगा पाता है। और अगर इमरजेंसी ब्रेक लगा भी दिया जाए तो टक्कर हो ही जाती है क्योकि ट्रैन की गति बहुत ज्यादा होती है जिससे वह 800 से 900 मीटर की दुरी जाकर रूकती है
आम तौर पर रात के समय में दृश्यता काफी कम हो जाती है। locopilot को ट्रेन की लाइट के दायरे में आने वाले केवल एक दो पोल तक का ही दिखाई देता है। अगर आधा किलोमीटर से आगे कोई खतरा है तो लोको पायलट उसे नहीं देख पाता। ऐसे में जब अचानक वह चीज सामने आती है तो चाहकर भी लोको पायलट इमरजेंसी ब्रेक नहीं लगा पाता है ।
ऐसे में इंजन में लगा हॉर्न ही locopilot की आखिरी उम्मीद होती है वो उसे लगातार बजाता रहता है और अमृतसर हादसे वाली डेमू का हॉर्न भी एक्सीडेंट के समय बज रहा था
इमरजेंसी ब्रेक लगाने पर क्या होता है -
इमरजेंसी ब्रेक लगाने से गाड़ी पटरी से उतर जाती है ऐसी धारणा लोगो में बनी हुई है लेकिन ऐसा नहीं होता है ,गाड़ी पटरी से तभी उतरती है जब पटरी में कोई खराबी हो या गाड़ी में, इमरजेंसी ब्रेक लगाने से गाड़ी कभी पटरी से नहीं उतरती इमरजेंसी ब्रेक इसलिए होता है कि ज़रूरत के समय गाड़ी कम से कम समय में सुरक्षित तरीके से रोकी जा सके लोकोपायलट को हर उस स्थिति में इमरजेंसी ब्रेक लगाना चाहिए जिसमें उसे ज़रूरी लगे
ट्रैन चेन पुलिंग का कार्य -
यदि चलती ट्रेन में कोई पैसेंजर चेन खींचता है तो यह इमरजेंसी ब्रेक की तरह ही काम करती है। चेन खींचने पर एयर पाइप का प्रेशर खत्म हो जाता है और सभी ब्रेक शू पहिए से रगडऩे लगते हैं। ऐसे में 110 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से दौड़ रही ट्रेन 800 से 900 मीटर पर जाकर रुक जाती है। और वापिस ट्रैन को चलाने के लिए हर डिब्बे के नीचे लगे कंप्रेशर से प्रेशर भरा जाता है और तब जाकर ट्रेन आगे बढ़ती है।
आपका पोस्ट बहुत अच्छा है, धन्यवाद ! अगर किसी को Pay Per Click Advertising के बारे में अंग्रेजी में जानकारी चाहिए तो आप इस 7 Excellent Tips For Pay Per Click Advertising For Instant Traffic Boost पोस्ट को पढ़ सकते हैं |
ReplyDelete